अगर आप दर्पण को हिंदी भाषा में जानना चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए हैं, आज मैं आपको दर्पण के बारे में बताऊंगा। इस लेख में हम आपको बताएंगे कैसे हुआ दर्पण का अविष्कार अर किस ने किया था |
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दर्पण का आविष्कार किसने किया?
दर्पण का आविष्कार किसी विशिष्ट व्यक्ति द्वारा नहीं किया गया है। दर्पण का आविष्कार विभिन्न समयों और संस्कृतियों में विभिन्न लोगों द्वारा किया गया है।
दर्पण का प्राचीन काल में प्रयोग किया जाता था, जिससे व्यक्तिगत देखभाल और सजीव अवस्था की परीक्षण की जा सकती थी। आधुनिक दर्पण तकनीकी उन्नति के साथ विकसित हुआ है और आजकल हम विभिन्न प्रकार के दर्पणों का उपयोग कई तरीकों से करते हैं, जैसे कि प्रतिबिम्ब बनाने, वैशिष्ट्यों की परीक्षण करने, और चिकित्सा उपयोग के लिए।
कुल मिलाकर, दर्पण का आविष्कार एक व्यक्ति द्वारा नहीं किया गया है, बल्कि यह विभिन्न समयों और संस्कृतियों में विभिन्न लोगों द्वारा विकसित किया गया है।
दर्पण का आविष्कार कौन से देश में हुआ था?
दर्पण के आविष्कार का प्राचीन इतिहास कई स्थानों और समयों में हुआ है, और इसका कोई एक विशिष्ट देश नहीं है। अनेक समृद्ध संस्कृतियों और समाजों ने दर्पण का प्रयोग अपने आवश्यकताओं और उद्देश्यों के लिए किया है।
दर्पण के प्राचीनतम प्रयोगों का पता नहीं लगता है, क्योंकि यह बहुत समय पहले से ही मानवता के जीवन में मौजूद था। विभिन्न संस्कृतियों जैसे कि इबीरियन, एग्यप्टियन, ग्रीक, रोमन, चीनी, और भारतीय संस्कृतियों में दर्पणों का प्रयोग बड़े पैमाने पर होता आया है।
सामान्य रूप से, दर्पणों का उपयोग व्यक्तिगत देखभाल, आभूषण, वैज्ञानिक अध्ययन, आयुर्वेदिक चिकित्सा, और विज्ञानिक अनुसंधान में किया गया है। तो, दर्पण के आविष्कार का सटीक देश नहीं होता है क्योंकि यह समृद्ध और विविध संस्कृतियों में विकसित हुआ है।
आईने की खोज की आविष्कार किया और वो कौन था जिसने पहली बार आईने में खुद की सूरत देखी होगी?
आईने के आविष्कार का सटीक और एक ही व्यक्ति का पता नहीं चल पाया है, क्योंकि यह विभिन्न समयों और स्थानों में हो सकता है। बहुत से प्राचीन समाजों ने चमकते हुए पत्थर, धातु, और अन्य प्रकार के सतहों का प्रयोग अपने प्रतिबिम्बों को देखने के लिए किया होगा।
जब बात की जाती है कि किसने पहली बार आईने में खुद की सूरत देखी, तो यह स्थिति समय के साथ विभिन्न स्थानों पर हो सकती है। इसके लिए एक व्यक्ति का नाम स्पष्ट रूप से नहीं उजागर किया गया है।
हिस्ट्री में विभिन्न संस्कृतियों और समयों में आईनों का प्रयोग अलग-अलग उद्देश्यों के लिए किया गया है, जैसे कि आभूषण, सौंदर्यिक डिज़ाइन, और आत्म-मूल्यांकन के लिए।
दर्पण का आविष्कार कैसे शुरू हुआ था ?
दर्पण यानी की आईना इस समय हमारे जीवन का एक बहुत अहम हिस्सा बन चुका है जिसतरह खाना पीना हमारी लाइफ स्टाइल का एक हिस्सा हैं उसी तरह शीशा भी हमारे जीवन का जरूरी हिस्सा बन चुका है छोटा सा सही है, लेकिन आप कोई शीशा हर घर में देखने को मिल जाएगा और जब हम जब भी अपने घर से बाहर निकलते हैं तो एक बार इस आईने में अपना चेहरा जरूर देखते हैं खैर, सोचने वाली बात यह है कि जब आईने के रास्ते तो इस दुनिया में नहीं था तो लोग खुद की छवि कैसे देखते थे और फिर वो कौन था |
चलिए आज के इस Blogके जरिए हम आईने की प्राचीन इतिहास और उसके आविष्कार के बारे में जानने की कोशीश करें दोस्तों, ये सब हम जानते हैं कि दुनिया में ज्यादातर आविष्कार हमने प्रकृति से लिए हैं मतलब कहीं की प्रगति से मिले संदेश पर किए हैं इसी तरह शीशे का आविष्कार भी होगा प्राचीन कहानियों की मानें तो तब के सामने शीशा नहीं हुआ करता था और लोग अपने आप को देखने के लिए ठहरे हुए पानी के इस्तेमाल करते थे कहीं कहीं लोग चिकने पत्थर पर खुद के प्रतिबंध को देख लिया करते थे वहीं कुछ लोग जरूरत पड़ने पर एक दूसरे की आँखों में खुद को देख लिया करते थे हालांकि शुरुआती समय में इंसानों को खुद के दृश्य को देखकर डर भी लगता था और हैरानी भी होती थी क्योंकि उस समय आईने को जादू माना जाता था जिसकों लेकर अलग अलग मुल्कों से लेकर अलग अलग तरह के लोग हैरान करते थे और हर तरह के किस्से मौजूद प्राचीन काल में दक्षिण अफ्रीका की बात सुतोष बस्ती के लोगों का मानना था ये मगरमच्छ और घड़ियाल इंसानों का शिकार करने के लिए तालाब के अंदर इंसानी चेहरे दिखाकर छलावा कल जिससे अगर कोई इंसान तालाब के किनारे जाएगा तो उसको खींचकर ले जाएंगे और खा जाएंगे इसी तरह चीन के लोगों का मानना था कि आईने को देखकर प्रेतात्माएं भाग जाती है चीन के कुछ इलाकों में आज भी लोग अपने घरों के बाहर शीशे रखते हैं ताकि प्रेतात्मा जब भी आये तो उन्हें उन शिष्यों में खुद की परछाई दिखेगी वो डर के भाग जाएंगे इसी तरह पश्चिम के देशों में एक मान्यता थी की ईश्वर ने आदम को एक आईना देकर इस धरती पर भेजा था जो उन्हें इस धरती पर सही मार्ग दिखाता था तथा हर वो चीज़ दिखाता था जिसकी शुरुआती क्षणों में मनुष्य को जरूरत थी और फिर बाद में जब आदम
की मृत्यु हुई तो एक भगत नामक मादक ने उसे आईने पर अपना कब्जा किया और उसे किसी पुराने शहर में दफना दिया एक समय में जादुई सा लगने वाला आई ना आज कल ही हमारे लिए काम से चीज़ है परन्तु उस समय ये सबको हैरान कर देता था तथा इसको बनाना बहुत मुश्किल था और यह बहुत ही ज़्यादा महंगा हुआ करता था इसलिए और गरीब तबका तो प्राचीन काल से लेकर तकरीबन उन्नीस वीं शताब्दी तक ठहरे हुए पानी में ही खुद के प्रतिबंध को देखता था हालांकि प्राचीन काल में जब लोगों को आने की जरूरत का अहसास हुआ तो उन लोगों ने इसके बारे में सोचना शुरू किया और कुछ पत्रों तथा धातुओं को तराशकर इस तरह से इसको बनाने की कोशीश की है उसमें खुद की छवि को देखा जा सके, जिसके सबूत आज भी में बने पॉलिश किए गए आईने के रूप में मौजूद है, जो कि बहुत ही मीडिया रिपोर्टस के अनुसार इस तरह के शीशे आठ हज़ार साल पहले तुर्की में इस्तेमाल किए जाते थे बता दें, जब तुर्की को ऐनाटोलिया के नाम से जाना जाता था, प्राचीन मेक्सिको के लोग भी इसी तरह के शीशे का इस्तेमाल करते थे और ये वो दौर था जब आई ने आज की तरह हम नहीं बल्कि बेहद खास थे और इस तरह इस समय ही इन आसनों को लेकर सबसे ज्यादा फायदा हुआ करती थी उस समय तुर्की में लोगों की मान्यता थी कि इन दिनों द्वारा देवता और उनके पूर्वजों की दुनिया को देखा जा सकता है तथा उनसे बात भी की जा सकती फिर साल चार हज़ार से तीन हज़ार ईसा पूर्व में जैसे अब इराक के नाम से जाना जाता है और मिस्र में भी मेरे को पॉलिश करके बनाए गए शीशे का इस्तेमाल किया जाता था वहीं इसके करीब एक साल बाद दक्षिण अमेरिका में पॉलिश किए गए पत्थर से शीशे बनाने का चलन शुरू हुआ हालांकि शीशे आज की तरह बिल्कुल नहीं थे इसमें सिर्फ इंसानों की परछाई का एक साफ रूप दिखता था वहीं पहली शताब्दी ईस्वी में रोमन लेखक द्वारा कांच के आई नो का सिक्स किया गया हालांकि विशेष है आज के शीशों से बहुत अलग थी मैं इन चीजों की तरह साफ नहीं देता था आकार में बहुत छोटे होते थे मध्य युग में यूनान रूम तथा यहूदी लोग पॉलिश की हुई चिकनी धातु के पट्टे को आईने के रूप में इस्तेमाल करते थे तथा काशी की पट्टियों पर भी अच्छी पॉलिश करके उसे भी आईने की तरह प्रयोग करते थे उस समय ना आई नो पर अच्छी नक्काशी की जाती थी तथा इन पर हैंडल लगाया जाता था जिससे इसे पकड़ने में आसानी होती थी और दूसरी वजह ये भी थी कि उस समय आईना शानो शौकत का भी एक चीज़ बन गया था फिर बाद में स्टील के तथा चांदी के बर्तन बने और पॉलिश किए हुए छोटे छोटे हाइने बनने लगे, जिससे हर अमीर व्यक्ति अपने पास रखता था कुछ लोग इसे टोपी में लगा कर चलते थे फिर पंद्रह वीं सदी की शुरुआत में ऐसे तड़पा बनाए जाने लगे जिसके सामने शीशा और पीछे धातु होती थी लेकिन मैंने इसमें इस तरह के शीशे सबसे ज्यादा मशहूर हुए तथा बनाए जाने लगी थी इसमें एक शीशे के टुकड़े को पॉलिश की हुई धातु से जोड़कर आईना तैयार किया जाता था हालांकि बाद में शीशे और तरल धातु को मिलाकर एक सिंगल पीस का आईना बनाया जाने लगा था फिर समय के साथ अलग अलग तरह के प्रयोग से अलग अलग किस्म के दर्पण बनने लगे, लेकिन अभी तक बने किसी भी आये नहीं वो बात नहीं थी जो आज के आईने में होती है दरअसल, उस समय कोई भी आईना साफ साफ प्रतिबिंब नहीं दिखाता था साफ चेहरा देखने के लिए लोगों को साल अठारह सौ पैंतीस तक का इंतजार करना पड़ा था आपको बता देंगे आधिकारिक तौर पर अठारह सौ पैंतीस में शीशे का आविष्कार हुआ जर्मन रसायन विज्ञानी जस्टिस लिविंग ने ये किया था इन्होने कागज की पतली सी जताया पर मेटालिक सिल्वर की पतली परत लगा शीशा बनाया जो पॉलिश किए गए से बने थे इन शीशों से चेहरा साफ दिखने लगा था हालांकि तब भी शीशा सिर्फ अच्छे और अमीर घराने के लोगों के पास होता था गरीबों के पास शीशा तब भी नहीं होता था वो तब भी पानी तथा धातु से बने शीशों में ही अपना चेहरा देख कर काम चलाते थे फिर धीरे धीरे शीशों की गुणवत्ता में सुधार करके इसे और अच्छा बनाया गया जिसके बाद तकरीबन बीस वीं सदी में आकाश ईशा इतना आम हुआ कि एक आदमी भी अब इसे अपने लिए खरीद पाता था दोस्तों आज के लिए बस इतना ही |
FAQ-
- दर्पण का आविष्कार किसने किया?
- दर्पण का आविष्कार कौन से देश में हुआ था?
- आईने की खोज की आविष्कार किया और वो कौन था जिसने पहली बार आईने में खुद की सूरत देखी होगी?
- दर्पण का आविष्कार कैसे शुरू हुआ था ?