आज हमारे पास साधारण से दिखने वाली घड़ी नहीं होती तो आज के इस आधुनिक समय में भी हमारा जीवन बहुत ही मुश्किलों से भरा होता इतना ही नहीं आज के समय में जो चीजें एक एक सेकंड के हिसाब से चल रही है, जैसे ये रेलगाड़ी का समय जहाज का समय ये सब कुछ संभव नहीं हो पाता कुल मिलाकर अगर कहा जाए तो आज के समय में घड़ी के मैदान जीवन का आधुनिकीकरण संभव ही नहीं था लेकिन क्या आप जानते हैं कि इतने महत्वपूर्ण यंत्र घड़ी काप्राचीन काल से लेकर आज तक घड़ी के आविष्कार का दिलचस्प इतिहास जानने के लिए दोस्तों आपको बता देंगे इस Blog को बनाने में हमें बहुत समय लगा है और शायद ये ऐसी कंप्लीट जानकारी आपको मीलेगा इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर जरूर करें चलिए शुरू करते हैं आपको बता दें कि वर्तमान समय में इस्तेमाल की जाने वाली घड़ी का एक बार में आविष्कार नहीं हुआ था किसी ने पहले एक घंटे वाली सूची बनाई तो किसी ने हुईं इस प्रकार विश्व में घड़ी का विकास कई ‘
घड़ी का आविष्कार किसने किया ,कहाँ और कैसे किया ?
घड़ी कई सदी पहले किया गया था और इसका सटीक समय और व्यक्ति निर्धारित करना कठिन है। हालांकि, सबसे प्राचीन घड़ी का प्रमुख आविष्कार बातचिन रहा है, जिन्होंने लगभग 2000 ईसा पूर्व चीन में अपने उपकरणों के माध्यम से घड़ी का प्रारंभ किया था। घड़ी के आविष्कार में विभिन्न सांस्कृतिक और सामाजिक संदर्भ थे। विशेष रूप से समय की गणना और प्रबंधन की आवश्यकता ने घड़ी के आविष्कार को बढ़ावा दिया। समय की प्राथमिकता के कारण, घड़ी के विभिन्न प्रारूप और प्रकार विकसित किए गए। यूनानी, रोमन, बाबिलोनीयन, इंडो-इरानी, इस्लामी और चीनी संस्कृतियों में भी समय की गणना के उपकरण विकसित किए गए थे। इतिहास में कई महत्वपूर्ण व्यक्तिगतताएँ और संस्थान बताए जा सकते हैं जिन्होंने घड़ी के आविष्कार में योगदान किया, लेकिन उनकी सटीक जानकारी नहीं हो सकती है। इस प्रकार, घड़ी के आविष्कार का सटीक क्रेडिट देना मुश्किल है क्योंकि यह कई सांस्कृतिक, व्यक्तिगत, और समयीन परिस्थितियों के परिणामस्वरूप हुआ।
ऐसे में सवाल उठता है कि उस समय के लोग अपनी दिनचर्या को कैसे चलाते होंगे?
आज की दुनिया में हम सब लोग समय के हिसाब से जागते हैं, ऑफिस जाते हैं, लंच करते हैं और सोते है जब घड़ी नहीं हुआ करती थी आपको बता दें कि इतिहासकारों को इसका ज्ञान नहीं है कि जीस तरह समय के पल पल का हिसाब आज घड़ी रखती हैं वो घड़ी के बनने के पहले माता कैसे जाता था? लेकिन इतना जरूर है की इंसान को जब से समय को समझने का अहसास हुआ तब से वे लोग शायद पहली बार घड़ी को सूरज के उगने और डूबने में एक याद करते होंगे और प्रगति हासिक काल में कई दशकों तक मनुष्य यूं ही अपना काम करता रहा होगा इंसान रात और दिन के समय का आभास करता रहा होगा और अनुमान लगाता रहा होगा कि अब दिन के या रात का पहला पहर खत्म हो गया है और दूसरा शुरू होने वाला है फिर जैसे जैसे इंसानों में बुद्धि का विकास हुआ, समय को मापने की उसकी जिज्ञासा और बढ़ती चली गई, जिसके चलते लोग सूरज की दिशा को देखकर ही समय का अनुमान लगाना शुरू कर देते थे ऐसी विधि का प्रचलन प्राचीनकाल से होता आ रहा है, जिसमें आकाश में सूर्य के घूमनेके कारण किसी पत्थर या लोहे के स्थिर टुकड़े की परछाई की गति में होने वाले बदलाव के द्वारा समय का अनुमान निकाला जाता था सूर्य घड़ी देखकर समय का लगभग अनुमान लग जाता था लेकिन ये घड़ी उस समय काम नहीं कर पाती थी जब बादल होते थे इसका इस्तेमाल प्राचीन मिस्र की सभ्यता में किया जाता था ये भी कहा जाता है कि सूर्यघड़ी वैज्ञानिक रूप से समय की गणना करने वाला पहला आविष्कार था हालांकि इसमें कुछ कमियां थीं जिसके लिए फिर दूसरा साधन ढूंढने की जरूरत महसूस हुई और इसी जरूरत के चलते कई सदी के बाद समय जानने के लिए जल घड़ी का आविष्कार हुआ था जो कि चीनी और भारतीय लोगों द्वारा आज से लगभग तीन हज़ार वर्ष पहले बनाया गया था भारत में बनी घड़ी को घटी का यंत्र कहा जाता था हालांकि समय के साथ ही विधि, मिस्रियों, यूनानियों एवं रोमानो को भी मालूम हो गयी जल घड़ी में दो पत्रों का प्रयोग होता था एक पात्र में पानी भर दिया जाता था और उसकी तली में छेद कर दिया जाता था उसमें से थोड़ा थोड़ा जल नियंत्रित बूँदों के रूप में नीचे रखे हुए दूसरे पात्र में गिरता रहता था इस पत्र में इकट्ठा हुए जल की मात्रा नाप कर समय का अनुमान किया जाता था बाद में कईदेशों में पानी के स्थान पर बालू का प्रयोग किया जाने लगा हाइड्रोलिक घड़ियों का आविष्कार आपको बता दें कि हिसाब से तीन सदी पहले ही यूनान के रहने वाले आर्किमिडीज़ ने बोयायन फोर्स की खोज कर ली थी,
जिसके बाद उन्होंने हाइड्रोलिक घड़ी का आविष्कार किया था उन्होंने पानी में एक तैरने वाला इंडिकेटर डाल दिया था और बर्तन के साथ एक मीटर लगा दिया था फिर जैसे जैसे पानी की बूंदों से बर्तन में पानी बढ़ता गया तो मीटर के जरिए समय का पता लग जाता था फिर इस सदी में सेबेस्टियन नाम के एक वैज्ञानिक ने पानी के जरिए ही घड़ी बनाई उन्होंने एक चाबीदार घड़ी को तैरने वाले धातु पर लगाकर किसी बर्तन में डाल दिया और फिर उस छड्के चाबी को एक चाबीदार पहिये से जोड़ दिया जो कि पहले से ही कुछ अंकों को दर्शाती थी फिर जैसे जैसे पानी की एक एक बूंद गिरती गई वो छड़ को पर उठाती गई जिससे पहिया धीरे धीरे घूमता और इस तरह समय का पता लगाया जाता था आपको बता दें कि फिर इसी तरह जल का प्रयोग करके कई सदियों तक कई देशों में वॉल्टर क्लॉक टावर बनाया गया और बहुत सी जगहों पर इसी पानी का प्रयोग करके उसमें एक घंटी भी लगाई गई जिसके सबूत आज से लगभग सवा दो हज़ार साल पहले प्राचीन यूनान में मिलते हैं यूनान यानी ग्रीस में पानी से चलने वाली आलम घड़ियां बनाई गई थी, जिसमें पानी के गिरते स्तर के साथ तय समय बाद घंटी बज जाती थी ये उस समय में एक बहुत ही बड़ा आविष्कार हुआ करता था फिर नौ वीं सदी में इंग्लैंड के ऐल्फ्रेड महान ने मोमबत्ती द्वारा समय का ज्ञान करने की विधि का आविष्कार किया उन्होंने एक मोमबत्ती पर लंबाई की और समान दूरियों पर चिन्हांकित कर दिए फिर मोमबत्ती के जलने पर सभी चिन्तक उसकी लंबाई के पहुंचने का निश्चित समय दर्ज कर लिया जाता था आधुनिक घड़ी के आविष्कार पर विवाद आधुनिक घड़ी के आविष्कार के बारे में जानने से पहले आपको ये बताना बहुत जरूरी है कि इसका भी आविष्कार एक बार में नहीं हुआ दरअसल, पहले घड़ी के सिर्फ घंटे वाली सुई हुआ करती थी, फिर कुछ समय बाद मिनट वाली सुई और फिर सेकंड वाली सुई आ गई यही वजह है कि आधुनिक घड़ी के आविष्कार को लेकर कई तरह की विवाद है इतिहास और मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक घड़ी के आविष्कार का श्रेय पोप सिलवेस्टर दुती को जाता है जिन्होंने सन नौ सौ छियानवे ईस्वी में यांत्रिक घड़ी का आविष्कार किया था आपको बताने की यांत्रिक घड़ियों में अनेक पहिए लगे होते हैं जो किसी कमानी, लटकते हुए भार या अन्य उपायों द्वारा चलते जाते हैं इन्हें किसी डोलन शील व्यवस्था द्वारा इस प्रकार नियंत्रित किया जाता है कि इनकी गति एक बराबर होती थी इनके साथ ही इसमें घंटा या घंटी भी होती थी,
जो निश्चित समय पर खुद ही बज उठता था और समय की सूचना देता था यूरोप में इस घड़ी का प्रयोग तेरह वीं शताब्दी के मध्य में कई जगह होने लगा हालांकि इस समय बनी ये घड़ी आज तक की कंप्लीट घड़ी नहीं थी इसमें ना तो हुई थी और ना ही सेकंड्स की यांत्रिक घड़ियों का आविष्कार आपको बता दें कि इतिहासकारों के मुताबिक सन तेरह सौ में हेनरी डेविड ने चकरी डायल तथा घंटों से निर्देश देने वाली पहली घड़ी बनाई थी, जिसमें भी मिनट और सेकंड की सुई नहीं थी आजकल की यांत्रिक घड़ियों को इसी श्रंखला की संशोधित कड़ियाँ माना जाता है सोलह वीं शताब्दी तक घड़ी जीस रूप में थी वो काफी बड़ी थी घड़ियां बाजार, महल या किसी सार्वजनिक स्थल पर लगी होती थी, इसलिए घड़ी को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना बहुत मुश्किल था इतिहासकारों के मुताबिक सन् पंद्रह सौ सतहत्तर में घड़ी की मिनट वाली सुई का स्विट्ज़रलैंड के जॉस बरगी द्वारा उनके एक खगोलशास्त्री मित्र के लिए किया गया था, जिसका प्रयोग घड़ियों में किया जाने लगा उस समय घड़ी के अंदर कलपुर्जे जैसे गिअर कटिंग इन जिन और स्टील निर्माण भी उतना अच्छा नहीं था जैसा आज है और साथ ही साथ भी बहुत ही वजनी हुआ करते थे इसीलिए समय समय पर घड़ी को छोटा और हल्का करने के लिए कई प्रयास होते रहे आपको बता दें कि कई लोगों का मानना है कि सबसे पहले जर्मनी के न्यूरमबर्ग शहर में पीटर है नलिन ने एक ऐसी घड़ी बना ली थी जिसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सके जर्मनी के हजारों के मुताबिक उन्हें छोटे पोर्टेबल सजावटी पीतल घड़ियों के निर्माता के रूप में जाना जाता है वे बहुत ही दुर्लभ और महंगी घड़ी बनाया करते थे जो उस समय के बड़े लोगों के बीच फैशनेबल थे और आपको बता देंगे कई देशों में इन्हें ही आधिकारिक तौर पर खरीक आविष्कारक माना जाता है आपको बता देंगे स्पाइरल फिट मैन स्प्रिंग का प्रयोग इसी दौर में शुरू हुआ था ये घड़ी के इतिहास का महत्वपूर्ण आविष्कार था क्योंकि अब घड़ी निर्माता को समय की गति सही रखने के लिए भारी वजहों की जरूरत नहीं थी लेकिन सोलह सौ पचहत्तर में संतुलित स्पाइरल स्प्रिंग के प्रयोग से घड़ी के समय मापने की क्षमता में काफी बदलाव आया घड़ी अब हर घंटे यहाँ तक की मापने में भी कारगर हो गयी थी और आकार छोटा होने के साथ साथ घड़ी के उपयोग करने के तरीके में भी परिवर्तन आ गया था अब घड़ी फैशन एक्सेसरीज के रूप में इस्तेमाल होने लगी थी इसका चलन तब शुरू हुआ जब इंग्लैंड के राजा चार्ल्स तीन है सोने की चेन के साथ जोड़कर कोर्ट की जेब में इसको रखा वर्तमान में हम हाथ में जो घड़ी पहनते है, वैसे ही पहली घड़ी फ्रांसीसी
गणितज्ञ और दार्शनिक ब्लेज़ पास्कल ने बनाई थी ये वही ब्लेज़ पास्कल हैं जिन्हें कैलकुलेटर का आविष्कारक भी माना जाता है लगभग सोलह सौ पच्चास के आस पास लोग जेब में घड़ी रखकर घूमते थे ब्लेज़ पास्कल ने एक रस्सी से इस घड़ी को हथेली में बांध लिया ताकि वो काम करते समय घड़ी देख सकें आपको बता देंगे समय के साथ कई तरह की हड्डियाँ बनने लगी जिसके चलते बहुत से व्यापारी खड़ी की अलग अलग तरह की डिजाइन बनाकर व्यापार में आने लगे आपको बता दें कि पुराने जमाने में घटिया बहुत ही महंगी हुआ करती थी इससे हर कोई नहीं खरीद सकता था इसलिए अठारह वीं सदी में कई राजाओं द्वारा अपने क्षेत्रों में समय देखने के लिए बड़े बड़े क्लॉक टावर बनवाए गए, जिसमें बड़ी बड़ी गाड़ियां लगी होती थी और ये टावर किसी ऐसी जगह पर होते थे जहाँ से लोगों को समय देखने में आसानी हो उदाहरण के तौर पर आप लखनऊ और देहरादून के घंटाघर को देख सकते हैं भारत में समय देखने के लिए पहले से ही कई प्रयास किए गए थे, जिसके चलते पांच जगहों पर जंतरमंतर का निर्माण भी किया गया था ताकि इनकी मदद से सूरज की दिशा और उससे बनी परछाई के आधार पर समय का पता लगाया जा सके |