Hero MotoCorp की सफलता की कहानी: साइकिल पार्ट्स से वैश्विक लीडर तक
हीरो एक ऐसा नाम जो रोड पर चल रही टूव्हीलर्स में हर सेकंड आपको दिख जाएगी। लेकिन क्या आपको पता है कैसे एक गरीब किसान के बेटे ने साइकिल के पार्ट्स बेचने से लेकर दुनिया की सबसे बड़ी बाइक बनाने वाली कंपनियों में अपनी पहचान बनाई? कैसे एक छोटे से कस्बे से शुरू हुआ यह सफर इतनी ऊंचाइयों तक पहुंचा?
1. परिचय: एक किसान के बेटे का सपना
हीरो की कहानी शुरू होती है 1 जुलाई 1923 से, जब पाकिस्तान के छोटे से शहर कमालिया में एक किसान के घर बृजमोहन लाल मुंजाल का जन्म हुआ। फ़ाइनेंशियल कंडीशन कुछ ख़ास अच्छी नहीं थी, इसीलिए बृजमोहन का भी पढ़ाई-लिखाई में ज़्यादा मन नहीं लगता था। उन्हें किताबों से ज़्यादा बिज़नेस में दिलचस्पी थी। पिता के लाख समझाने के बावजूद बृजमोहन ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी और काफ़ी कम उम्र में ही छोटे-मोटे बिज़नेस शुरू कर दिए।
2. बंटवारा और साइकिल पार्ट्स का व्यवसाय
इससे पहले कि वह कुछ बड़ा कर पाते, साल 1947 आ गया। बंटवारे के दर्द में बृजमोहन लाल मुंजाल का परिवार भी अपना सब कुछ छोड़छाड़ कर कमालिया से पंजाब के लुधियाना आकर बस गया। लुधियाना में ज़िंदगी आसान नहीं थी। ना पैसा था, ना रोज़गार, लेकिन इन मुश्किल हालातों में भी बृजमोहन ने हार नहीं मानी और यहीं पर एक छोटी सी दुकान खोलकर साइकिल के पार्ट्स बेचने लगे।
उस टाइम इंडिया में साइकिल पार्ट्स ज़्यादातर इंपोर्टेड होते थे, क्योंकि देश में मैन्युफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी मौजूद ही नहीं थी। उन्हें एहसास हुआ कि अगर वह दूसरों पर डिपेंडेंट रहेंगे तो फिर कभी भी ग्रो नहीं कर पाएंगे। इसीलिए उन्होंने ख़ुद प्रोडक्शन के फ़ील्ड में उतरने का फ़ैसला लिया।
3. हीरो साइकिल्स का जन्म और शुरुआती चुनौती
पार्ट्स बनाने के लिए टेक्नोलॉजी, इन्वेस्टमेंट और सबसे ज़रूरी, गवर्नमेंट से लाइसेंस हासिल करना एक बड़ी चुनौती थी। बिना सही कनेक्शन के लाइसेंस मिलना लगभग असंभव था। मुंजाल भाइयों ने कई बार दिल्ली के चक्कर लगाए और लगातार कोशिश करते रहे।
1956 में, उनकी मेहनत का नतीजा यह निकला कि उन्हें मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस मिल गया, जिसके बाद ₹500 का लोन लेकर हीरो साइकिल्स की शुरुआत हुई।
शुरुआत में, उन्होंने घर के पिछले हिस्से में एक छोटा सा सेटअप बनाकर काम शुरू किया। उनका पहला प्रोजेक्ट बाइक फ़ॉर्क (fork) था, जिसे एटलस कंपनी को सप्लाई किया जाना था।
- पहला झटका: शुरुआत में सब कुछ ठीक था, लेकिन थोड़े टाइम बाद फ़ॉर्क की वेल्डिंग्स क्रैक होने और पाइप्स टूटने की शिकायतें आनी शुरू हो गईं। डीलर्स ने पूरा माल वापस भिजवा दिया।
- ईमानदारी से जीत: मुंजाल ब्रदर्स ने बिना कोई बहाना बनाए सभी डीलर्स का पूरा पैसा वापस कर दिया। इस डिसीज़न से भले ही उनकी जेब खाली हो गई थी, लेकिन हीरो ब्रांड की इज़्ज़त बच गई।
उन्होंने डिज़ाइन में सुधार किया, मैन्युफैक्चरिंग प्रोसेस को इम्प्रूव किया, और इस बार जब नया फ़ॉर्क मार्केट में आया तो फिर वो सुपरहिट हो गया।
4. साइकिल बाज़ार पर कब्ज़ा
मुंजाल ब्रदर्स को एहसास हुआ कि असली सक्सेस सिर्फ़ साइकिल पार्ट्स बेचने में नहीं है; उन्हें पूरी साइकिल बनानी होगी—जो आम आदमी के लिए सस्ती, मज़बूत और टिकाऊ हो।
सबसे बड़ी चुनौती थी साइकिल का हैंडल, जिसकी सप्लाई पर एक सप्लायर की मोनोपोली थी। दूसरों पर डिपेंडेंसी ख़त्म करने के लिए उन्होंने ख़ुद ही हैंडल बनाने का फ़ैसला किया। लोकल कारीगरों की मदद से, उन्होंने अपनी पहली पूरी तरह से ख़ुद की बनाई हुई साइकिल मार्केट में लॉन्च की।
यह साइकिल भारतीय कंडीशंस के लिए बिल्कुल परफ़ेक्ट थी—मज़बूत इतनी कि किसानों की टोकरी और दूध बेचने वालों के बड़े-बड़े कैंस का वज़न भी आसानी से झेल सकती थी।
- 1966: हीरो साइकिल्स सालाना 1 लाख से ज़्यादा साइकिल्स बना रही थी।
- 1980: कंपनी हर दिन 19,000 साइकिल्स बनाने लगी।
- 1986: Hero साइकिल्स का नाम गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज हो गया, जब यह दुनिया की सबसे बड़ी साइकिल बनाने वाली कंपनी बन गई।
5. मोटरसाइकिल की दुनिया में कदम: हीरो होंडा
इंटरनेशनल मार्केट को ऑब्ज़र्व करते हुए मुंजाल जी ने देखा कि दुनिया में मोटरसाइकिल्स की डिमांड तेज़ी से बढ़ रही है। उस समय इंडियन मोटरसाइकिल मार्केट पर रॉयल एनफ़ील्ड, जावा, राजदूत और बजाज जैसी कुछ कंपनियों का ही दबदबा था, लेकिन ये या तो बहुत महंगी थीं या माइलेज के मामले में बेकार।
मुंजाल जी को एक बड़ा मौक़ा दिखा: एक ऐसी मोटरसाइकिल जो सस्ती हो, मज़बूत हो और माइलेज भी ज़बरदस्त दे। लेकिन हीरो के पास इंजन बनाने की टेक्नोलॉजी नहीं थी।
दूसरी ओर, जापान की लीडिंग ऑटोमोबाइल कंपनी Honda इंडियन मार्केट में एंट्री नहीं कर पा रही थी, क्योंकि सरकार विदेशी कंपनियों को सीधे कारोबार करने की परमिशन नहीं देती थी।
- 1984: Hero और Honda की पार्टनरशिप फ़ाइनल हुई और Hero Honda की नींव रखी गई। यह भारत की पहली जॉइंट वेंचर टू-व्हीलर कंपनी बनी।
6. गेम चेंजर: CD 100 और स्प्लेंडर की सफलता
Hero Honda ने हरियाणा में अपना पहला प्लांट लगाया और 1985 में CD 100 नाम की एक मोटरसाइकिल को लॉन्च किया, जो इंडियन टू-व्हीलर इंडस्ट्री के लिए गेम चेंजर साबित हुई।
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- बदलाव: जहाँ अन्य बाइक्स 30-50 KMPL का माइलेज देती थीं, वहीं CD 100 80 KMPL के ज़बरदस्त माइलेज के साथ मार्केट में आई।
- टैगलाइन: Hero Honda ने इसे “Fill It, Shut It, Forget It” की टैगलाइन के साथ प्रमोट किया, जिससे यह मिडिल क्लास कंज्यूमर्स के लिए परफ़ेक्ट चॉइस बन गया।
- 1994: Hero Honda ने Splendor लॉन्च की, जो भारत की सबसे ज़्यादा बिकने वाली मोटरसाइकिल बनी।
- 2001: Hero Honda दुनिया की सबसे ज़्यादा टू-व्हीलर्स बेचने वाली कंपनी बन गई।
7. साझेदारी का अंत: होंडा से ब्रेकअप
बाहर से यह रिलेशन जितना स्मूथ दिखता था, अंदर से उतना ही टेंशन भरा था। Hero अब सिर्फ़ इंडिया तक सीमित न रहकर वैश्विक बाज़ार (रूस, अमेरिका, यूरोप) में बाइक बेचना चाहता था, लेकिन Honda को यह मंजूर नहीं था, क्योंकि उसे अपनी सेल्स गिरने का डर था। Honda ने Hero को सिर्फ़ नेपाल, भूटान और बांग्लादेश तक सीमित कर दिया।
1991 में LPG (उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण) नीतियाँ लागू हुईं, जिससे विदेशी कंपनियों के लिए भारत में एंट्री लेना आसान हो गया।
- Honda का अलग होना: Honda ने इस मौक़े का फ़ायदा उठाया और अपनी ख़ुद की कंपनी Honda Motorcycle & Scooter India नाम से लॉन्च कर दी। उन्होंने उसी सेगमेंट में बाइक लॉन्च करनी शुरू कर दी, जिसमें Hero Honda पहले से ही मौजूद था।
- Hero का फ़ोकस: Hero को समझ आ गया था कि बाज़ार में बने रहने के लिए उसे अपनी ख़ुद की R&D डेवलप करनी होगी और ‘मेड इन इंडिया’ इंजन बनाना होगा।
- 2011: कई सालों तक चले इस कॉन्फ़्लिक्ट के बाद, 26 साल पुरानी पार्टनरशिप को ऑफ़िशियली ख़त्म कर दिया गया। Honda ने अपने 26% शेयर $1 बिलियन में बेच दिए, जिसे बृजमोहन मुंजाल ने ख़रीद लिया।
- इस तरह, Hero Honda ऑफ़िशियली Hero Motocorp बन गया।
8. हीरो मोटोकॉर्प: आत्मनिर्भरता की ओर
Hero Motocorp बनने के बाद कंपनी ने अपनी ख़ुद की टेक्नोलॉजी डेवलप करने पर फ़ोकस किया। जयपुर में एक एडवांस्ड R&D सेंटर बनाया गया और ग्लोबल ऑटोमोटिव एक्सपर्ट्स की एक मज़बूत टीम हायर की गई।
- 14 जुलाई 2016: Hero ने पहली बार अपनी ख़ुद की टेक्नोलॉजी पर बनी बाइक Splendor iSmart लॉन्च की, जिसमें चेचिस से लेकर इंजन तक हर पार्ट Hero ने ख़ुद बनाया था।
- अंतर्राष्ट्रीय विस्तार: Hero सिर्फ़ इंडियन मार्केट तक सीमित रहने की बजाय लैटिन अमेरिका, अफ़्रीका और वेस्ट एशिया में भी अपनी बाइक एक्सपोर्ट करने लगा।
9. भविष्य की ओर: इलेक्ट्रिक वाहन (Vida)
- 2016: Hero ने EV मार्केट में एंटर करने की प्लानिंग शुरू कर दी और एथन एनर्जी में 30% स्टेक ख़रीदा।
- 2021: Hero ने अपना EV ब्रांड Vida को इंट्रोड्यूस किया।
- 2022: Hero ने अपना पहला इलेक्ट्रिक स्कूटर Vida V1 लॉन्च किया, जो ओला इलेक्ट्रिक, एथर और बजाज चेतक इलेक्ट्रिक जैसे कॉम्पिटिटर्स को सीधा चैलेंज देता है।
10. आज की स्थिति
आज Hero Motocorp दुनिया की लार्जेस्ट मोटरसाइकिल और स्कूटर्स मैन्युफैक्चरर है, जो कि 48 देशों में अपनी उपस्थिति स्थापित कर चुकी है।
बाज़ार हिस्सेदारी (2024):
- Hero: लगभग 30%
- Honda: 23.4%
Honda ने सोचा था कि Hero उसके बिना कहीं नहीं टिक पाएगा, लेकिन Hero तो असली Hero निकला।