नटराज और अप्सरा Pencil हम सभी के बचपन के साथी रहे हैं। आइए आज जानते हैं कि कैसे BJ Sangvi और उनके दोस्तों ने हर मुश्किल को पार करते हुए भारत में अपना नाम बनाया। Pencil को भारत के टॉप स्टेशनरी ब्रांड्स मेंला खड़ाकिया साल था 1950 का इंडिया अभी–अभी आजाद हुआ था और यहां पढ़ाई का सपना देखने वाले लाखों बच्चों के पास एक अच्छी Pencil तक नहीं थी हां कुछ अमीर बच्चे महंगी विदेशी Pencil खरीद सकते थे लेकिन बाकी उनके लिए कुछ गिनी चुनी लोकल Pencil ही थी जो कमजोर थी जल्दी टूट जाती और जिनसे लिखते टाइम हाथ काला हो जाता था असल में इंडिया के अंदर अच्छी Pencil बनती ही नहीं थी अगर किसी को क्वालिटी Pencil चाहिए होती थी तो उसे इंग्लैंड जर्मनी या फिर जापान की महंगी इंपोर्टेड Pencil खरीदनी पड़ती थी उस टाइम एडब्ल्यू फेबर कास्टल मित्सुबिशी Pencil और स्टेडलर जैसी विदेशी कंपनियां ही इंडियन मार्केट पर राज कर रही थी लेकिन प्रॉब्लम यह थी कि एक कॉमन मिडिल क्लास आदमी के लिए इतनी महंगी Pencil खरीद पाना ऑलमोस्ट इंपॉसिबल था इसीलिए बच्चे नरकट की कलम और दबात की स्याही से लिखा करते थे और अगर किसी बच्चे के पास लकड़ी की Pencil आ जाए तो फिर वो अपने दोस्तों के बीच एकदम वीआईपी बन जाता लेकिन फिरएंट्री हुई बीजे सांगवी उर्फ बाबू भाई की जो कि इन्हीं हालातों को एक्सपीरियंस करतेहुए बड़े हुए थे बीजे सांगवी पढ़ने में तो काफी तेज थे लेकिन फाइनेंशियल प्रॉब्लम्स ने उनका आगे का रास्ता रोक दिया उन्होंने जैसे–तैसे हाई स्कूल तो पूरा कर लिया लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए पैसा नहीं था इसीलिए पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी औरउनके इंजीनियरिंग का सपना अधूरा ही रह गया कुछ इसी तरह से समय बीतता गया और जब बाबू भाई थोड़े बड़े हुए तो उन्होंने देखा कि गरीब बच्चों के पास एक मामूली फसल तक नहीं है और फिर यह देखकर उन्होंने ठान लिया कि बच्चों की इस प्रॉब्लम को वह खत्म करके ही रहेंगे I

- बल्ब का आविष्कार किसने किया?
- दर्पण का आविष्कार कैसे शुरू हुआ था ?
- बैटरी का आविष्कार कैसे शुरू हुआ था ?
- हवाई जहाज का आविष्कार कैसे शुरू हुआ था ?
- घड़ी का आविष्कार किसने किया ,कहाँ और कैसे किया ?
- कंप्यूटर(Computer)क्या-
- रेडियो का इतिहास, रेडियो का आविष्कार कब और कैसे हुआ ?
अब, भले ही कैमलिन जैसी कुछ भारतीय कंपनियों ने भारत में पेंसिल निर्माण शुरू किया था, लेकिन गुणवत्ता के लिहाज से वे विदेशी ब्रांडों और मित्रों की तरह सुचारू और मजबूत नहीं थे, समस्या तब और बढ़ गई जब उस समय भारतीय बाजार में मेड इन इंडिया उपलब्ध नहीं था। का मतलब ही लो क्वालिटी माना जाता था लोग इंडियन प्रोडक्ट्स पर भरोसा ही नहीं करते थे हर किसी को बस फॉरेन ब्रांड चाहिए होता था लेकिन 1950 के एंड तक भारत में एक बड़ा बदलाव आने लगा सरकार ने विदेशी इंपोर्ट्स पर डिपेंडेंसी को कम करने के लिए स्वदेशी इंडस्ट्रीज को प्रमोट करना शुरू कर दिया और फिर यहीं से इंडियन Pencil इंडस्ट्री का भी टर्निंग पॉइंट आया यही वह समय था जब बीजे सांगवी ने अपने दो करीबी दोस्तों रामनाथ मेहरा और मनसुखानी के साथ मिलकर खुद Pencil बनाने का फैसला लिया लेकिन दोस्तों Pencil बनाना इतना आसान काम नहीं था प्रॉब्लम यह थी कि उस जमाने में Pencil मैन्युफैक्चरिंग टेक्नॉलॉजी सिर्फ कुछ गिनी चुनी फॉरेन कंपनीज के पास में ही थी अब इन तीनों दोस्तों के पास मेरे पास ज्ञान तो बहुत था, पर ज्ञान नहीं था। इसीलिए तीनों दोस्त जर्मनी गए और पेंसिल बनाने की बारीकियाँ सीखीं। उन्होंने देखा कि वहाँ बेहतरीन क्वालिटी की पेंसिलें कैसे बनती हैं। बनाई जाती है किस तरह के रॉ मटेरियल का इस्तेमाल होता है और मशीनस कैसे काम करती हैं लेकिन दोस्तों Pencil बनाने के लिए सिर्फ फोन कंपनीज की टेक्निक सीख लेना ही काफी नहीं था सबसे बड़ा चैलेंज था कि रॉ मटेरियल कैसे जुटाए जाए क्योंकि एक बेहतरीन Pencil बनाने के लिए दो सबसे जरूरी मटेरियल होते हैं पहला हाई क्वालिटी वुड जो हल्की मजबूत और टिकाऊ हो और जिसे आसानी से शार्प किया जा सके इसके लिए सीडर वुड यानी कि देवदार की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता था जो कि ज्यादातर फॉरेन कंट्रीज में ही पाई जाती थी लेकिन प्रॉब्लम यह थी कि इसे इंपोर्ट करना बेहद महंगा था और कुछ इसी तरह से दूसरा सबसे जरूरी मटेरियल था ग्रेफाइट कोर यानी एक ऐसी लीड जो कि ना तो बहुत ज्यादा सॉफ्ट हो और ना ही बहुत हार्ड यानी जो लिखने पर ना तो जल्दी घिसे और ना ही इतनी सख्त हो कि कागज पर लिखते टाइम दबाव डालना पड़े एक्चुअली ग्रेफाइट कोर को सही बैलेंस में बनाने के लिए कार्बन और क्ले के एकदमसटीक I
मिक्सचर की जरूरत होती थी लेकिन यहां सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि इंडिया में ना तो उस क्वालिटी की लकड़ी मिलती थी और ना ही प्योर ग्रेफाइट ऐसे में जो लोकल पेंसिल कंपनीज थी उन्हें यह दोनों ही चीजें इंपोर्ट करनी पड़ती थी जिनसे उनका प्रोडक्शन कॉस्ट बहुत ज्यादा बढ़ जाता था यही वजह थी कि ज्यादातर लोग इस बिजनेस में घुसने की हिम्मत ही नहीं करते थे लेकिन बीजे सांगवी और उनके दोस्तों ने ठान लिया कि अगर भारत में रिसोर्सेस अवेलेबल नहीं है तो फिर हम अपना रास्ता खुद बनाएंगे हालांकि यह काम इतना आसान नहीं था इसमें सबसे बड़ा चैलेंज था लकड़ी का अरेंजमेंट करना अब जो सीडर वोट था वो बेसिकली अमेरिका से इंपोर्ट होकर आता था यही वजह था कि उसे यूज करना बहुत महंगा पड़ता इसीलिए तीनों दोस्तों ने इंडिया में ही एक बेहतर अल्टरनेटिव डटने का फैसला लिया और फिर वो कई राज्यों के जंगलों में महीनों तक घूमे और सैंपल्स को लगातार टेस्ट किया बार–बार फेल हुए लेकिन फिर भी पीछे नहीं हटे और फिर आखिरकार एक ऐसी लकड़ी का सोर्स मिला जो कि इंपोर्टेड सीडर वुड के जितना ही स्ट्रांग और टिकाऊ था असल में इस लकड़ी का नाम था पॉपुलर वुड यानी कि चिनार की लकड़ी यह लकड़ी हल्की भी थी और आसानी से शार्प हो सकती थी यानी कि Pencil बनाने के लिए बिल्कुल परफेक्ट लेकिन अभी भी ग्रेफाइट कोर को डेवलप करने की चुनौती तो बाकी ही थी इसका सलूशन निकालने के लिए उन्होंने लोकल मैन्युफैक्चरर्स और रिसर्चस के साथ मिलकर एक नया फार्मूला डेवलप किया और फिर महीनों की मेहनत के बाद एक ऐसा ग्रेफाइट तैयार हुआ जो ना सिर्फ स्मूथ था बल्कि ड्यूरेबल भी यानी कि अब उनके पास लकड़ी थी और ग्रेफाइट भी लेकिन एक और बड़ा चैलेंज अब भी था कि इसे बनाने वाली मशीन कहां से लाएं क्योंकि उनके पास इतने पैसे ही नहीं थे कि विदेश से नई मशीन इंपोर्ट कर सकें इसीलिए उन्होंने लोकल इंजीनियर्स और कारपेंटर से बात करके भारत में ही मशीनरी को तैयार करवाने का फैसला लिया वह अलग–अलग वर्कशॉप में गए विदेशी मशीनस के वर्किंग्स को समझने की कोशिश की दिन–रातएक्सपेरिमेंट किया और फिर छोटे–छोटे पार्ट्स को इधर–उधर से कलेक्ट करके एक ऐसी मशीन तैयार की जो कि मिनिमम कॉस्ट में मैक्सिमम क्वालिटी की Pencil बना सकती थी हालांकि इस मशीन को जुगाड़ टेक्नोलॉजी का सहारा लेकर बनाया गया था इसीलिए इसकी स्पीड बहुत ज्यादा स्लो थी और यह मशीन हमेशा खराब हो जाती थी और दोस्तों बीजे सांगवी इतने परेशान हो गए थे कि पैसों की तंगी लगातार मेहनत और मशीनों के साथ दिन–रात जूझना इस सबका असर उनकी मेंटल हेल्थ पर ऐसा पड़ा कि बिना नींद की गोली लिए एक रात सोना भी मुश्किल हो गया था लेकिन वह जानते थे कि अगर यहां हार मान ली ना तो सब कुछ खत्म हो जाएगा आखिरकार मशीनस में कई सारे एडजस्टमेंट और अपग्रेड्स करने के बाद से वह पहले से काफी तेज रफ्तार से Pencil बनाने लगे और फिर इसी कामयाबी को देखते हुए साल I

1958 में हिंदुस्तान Pencil लिमिटे की नीव रखी गई और फिर उसी साल लॉन्च हुई नटराज 621 एब जो ना सिर्फ इंपोर्टेड ब्रांड्स की जितना बेहतरीन थी बल्कि इंडियन वेदर कंडीशंस के हिसाब से और भी ज्यादा टिकाऊ थी कंपनी को पता था कि अगर इंडियन मार्केट में सरवाइव करना है तो सबसे पहले उन्हें लोगों के बजट के अकॉर्डिंग ही प्रोडक्ट बनाना होगा इसीलिए उन्होंने अपनी Pencil को काफी सस्ते प्राइस पर मार्केट में उतारा लेकिन यहां प्रॉब्लम यह थी कि कस्टमर्स फिर भी इसे खरीदने को तैयार नहीं थे क्योंकि जैसा कि हमने आपको पहले भी बताया कि उस टाइम पर मेड इन इंडिया प्रोडक्ट्स को लेकर हम इंडियंस के मन में खराब क्वालिटी का परसेप्शन बना हुआ था इसी वजह से दुकानदार भी स्वदेशी सामान को अपने दुकान में रखने से कतराते थे ऐसे में कंपनी के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी लोगों का भरोसा जीतना असल में बीजे सांगवी और उनके दोस्तों को पता था कि इस Pencil को सिर्फ लोगों तक पहुंचाने की देरी है क्योंकि यूज करने के बाद से तो वो खुद ही इसकी क्वालिटी को पहचान लेंगे इसीलिए उन्होंने सबसे पहले अपना डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क मजबूत करने पर फोकस किया बड़ी–बड़ी दुकानों की बजाय छोटे–छोटे ही स्टेशनरी स्टोर्स को टारगेट किया और शॉपकीपर्स को कन्वेंस करने लगे कि वह उनकी Pencil भी बेचना शुरू करें लेकिन दिक्कत यह थी कि शॉपकीपर्स पहले से ही इंपोर्टेड ब्रांड्स बेच रहे थे और उन्हें लग रहा था कि और इंडियन ब्रांड्स की तरह यह नई इंडियन Pencil भी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाएगी और फिर जब इस स्ट्रेटेजी से कुछ खास सक्सेस नहीं मिली तो उन्होंने एक नया प्लान बनाया जो था सीधे स्टूडेंट्स तक पहुंचना अब उन्होंने स्कूल्स और कॉलेजेस में नटराज Pencil के कुछ फ्री सैंपल्स बांटने शुरू कर दिए और फिर जैसे ही स्टूडेंट्स ने इसे आजमाया उन्हें तुरंत फर्क महसूस हुआ ग्रेफाइटइतना स्मूथ और डार्क था कि लिखावट बोल्ड और क्रिस्पी दिखती थी साथ ही इसकी लीड भी इंपोर्टेड Pencil से कहीं ज्यादा मजबूत थी और सबसे बड़ी बात उस जमाने में Pencil के साथ दिए जाने वाले इरेजर्स बहुत ज्यादा डस्ट छोड़ते थे लेकिन नटराज 621 एब के साथ मिलने वाले इरेजर इंडस्ट्री था इन सब खूबियों के ही बदौलत देखते ही देखते स्टूडेंट्स के साथ–साथ ऑफिस एंप्लॉयज भी प्रोजेक्ट और डॉक्यूमेंट के लिए नटराज Pencil का इस्तेमाल करने लगे 1970 आते–आते नटराज 621 एब भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाली Pencil बन चुकी थी और हिंदुस्तान Pencil लिमिटेड ने इंडियन मार्केट में अपनी स्ट्रांग प्रेजेंस बना ली थी लेकिन दोस्तों तब तक एक नया चैलेंज उनके सामने आ खड़ा हुआ था कंपनी ने महसूस किया कि सिर्फ स्टूडेंट और ऑफिस वर्कर्स के लिए ही नहीं बल्कि प्रोफेशनल आर्टिस्ट डिजाइनर्स और आर्किटेक्ट के लिए भी एक हाई क्वालिटी Pencil होनी चाहिए एक ऐसी Pencil जो नटराज से भी ज्यादा स्मूथ डार्क और ग्रिप करने में ज्यादा कंफर्टेबल हो इसी जरूरत को ही पूरा करने के लिए 1970 में हिंदुस्तान Pencil लिमिटेड ने ही अप्सरा ब्रांड को लॉन्च किया बेसिकली अप्सरा की लीड ज्यादा डार्क और स्मूथ थी और इसका खास फार्मूला इसे स्केचिंग और आर्टवर्क के लिए परफेक्ट बनाता था ऐसे में धीरे–धीरे अप्सरा ने प्रोफेशन आर्टिस्ट और डिजाइनर्स के बीच में अपनी जगह बना ली इसी दौरान हिंदुस्तान Pencil ने भारत के बाहर भी अपने प्रोडक्ट को एक्सपोर्ट करने का फैसला किया और फिर आने वाले कुछ ही सालों में एशिया मिडिल ईस्ट अफ्रीका और यूरोप के बाजारों में नटराज और अप्सरा पेंसिल्स एक्सपोर्ट होने लगी इस तरह एक देसी इंडियन ब्रांड अब ग्लोबल स्टेज पर अपनी पहचान बना रहा था लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ जिसनेहिंदुस्तान Pencil के लिए बाहर नहीं बल्कि अपने ही देश में सरवाइव करना मुश्किल बना दिया एक्चुअली 1991 में इंडियन गवर्नमेंट ने इकोनॉमिक लिबरलाइजेशन की शुरुआत की यानी अब कोई भी फॉरेन कंपनी भारत में आकर अपनी फैक्ट्री सेटअप कर सकती थी और इसका असर इंडियन स्टेशनरी मार्केट पर भी पड़ा कई बड़े–बड़े इंटरनेशनल ब्रांड्स ने इस मौके का फायदा उठाया और इंडियन मार्केट में एंट्री ले ली अब तक जिस मार्केट पर हिंदुस्तान Pencil का राज था वहां फॉरेन कंपटीशन बढ़ने लगा और कंपनी को अब डर सताने लगा कि कहीं यह विदेशी ब्रांड्स उसे पीछे ना छोड़ दें लेकिन उन्होंने इस चुनौती को एक नए मौके की तरह देखा और एक बोल स्ट्रेटजी बनाई अब उनकी रणनीति यह थी कि वह सिर्फ Pencil तक ही सीमित नहीं रहेंगे बल्कि वो इंडियन कस्टमर्स की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए स्टेशनरी इंडस्ट्री में भी इनोवेशंस करेंगे इसी दौरान उन्होंने डस्ट फ्री इरेजर लॉन्च किया जिससे इरेज करने के बाद से एक्स्ट्रा मेस नहीं बचता था साथ ही शार्पनर्स को भी अपग्रेड किया ताकिपेंसिल्स के नोक ज्यादा शार्प हो और बार–बार ना टूटे इतना ही नहीं उन्होंने बाल पेंस जेल पेंस कलर Pencil और क्रियोस यानी कि जिन्हें हम मोम के कलर बोलते थे वह भी मार्केट में उतारे इस तरह से अब हिंदुस्तान Pencil सिर्फ Pencil ब्रांड नहीं बल्कि स्टेशनरी का एक बड़ा नाम बन चुका था 1990 में हिंदुस्तान Pencil ने अपने ब्रांड को और भी मजबूत करने के लिए टेलीविजन और प्रिंट मीडिया का भी सहारा लिया क्योंकि उस दौर में लोगों पर टीवी एड्स का बहुत गहरा असर होता था हर घर में बच्चे और उनके माता–पिता एक साथ बैठकर टीवी देखा करते थे और कंपनी ने भी इस मौके को पहचानते हुए कुछ ऐसे ऐड कैंपेन लॉन्च किए जो कि आज भी लोगों की यादों में बसे हुए हैं जैसे कि द विनिंग रेस ऐड में दिखाया गया कि Pencil के रेस में जहांबाकी ब्रांड की Pencil के लिए टूट जाती है वहीं नटराज Pencil इस रेस में नंबर वनआती है ची की तरफ बढ़ती हुई नटराज की Pencil और ट चैंपियन ल कुछ इसी तरह से कंपनी ने चलती ही जाए नाम का एक ऐड कैंपेन भी लॉन्च किया जो कि उस समय काफी पॉपुलर रहा
और कंपनी को इसका बहुत फायदा भी मिला नटराज Pencil चलती ही जाए इसके बाद से अप्सरा Pencil के लिए एक अलग स्ट्रेटेजी बनाई गई एक्स्ट्रा डार्क एक्स्ट्रा स्मार्ट टैग लाइन के साथ एक ऐड लंच किया गया जिसमें स्टूडेंट्स Pencil को ड्रम स्टिक की तरह यूज करके उसकी मजबूती दिखा रहे थे अपसरा एब्सलूट एक्स्ट्रा डार्क एक्स्ट्रा स्ट्रांग और दोस्तों इन सभी एडवरटाइजमेंट्स ने नटराज और अप्सरा को घर–घर में पॉपुलर बना दिया लेकिन दोस्तों साल 2000 आते–आते कंपटीशन और भी ज्यादा बढ़ने लगा क्योंकि अब मार्केट में सिर्फ फॉरेन ब्रांड ही नहीं बल्कि इंडियन ब्रांड्स भी मजबूत हो रहे थे कैमलिन और डम्स जैसी कंपनियां तेजी से अपनी पकड़ बना रही थी और यह हिंदुस्तान Pencil के लिए एक नया चैलेंज था अब सिर्फ अच्छी Pencil बनाना ही काफी नहीं था बल्कि कस्टमर्स को समझाना भी जरूरी था था कि उनके प्रोडक्ट्स आखिर क्यों सबसे बेहतर हैं यही सोचकर कंपनी ने अपनी मार्केटिंग स्ट्रेटेजी बदल दी क्योंकि पहले स्टूडेंट्स उनके मेन टारगेटेड ऑडियंस थे लेकिन अब उन्होंने पेरेंट्स को भी टारगेट करना शुरू कर दिया खासकर ऐसे पेरेंट्स जो कि अपने बच्चों के लिए अच्छी और अफोर्डेबल स्टेशनरी चाहते थे इसी के साथ उन्होंने एग्जाम देने वाले स्टूडेंट्स को ध्यान में रखते हुए अप्सराएग्जाम Pencil लॉन्च की इसमें स्मूथ और डार्क ग्रेफाइट था जो कि राइटिंग को ज्यादा क्लीन और रीडेबल बनाता था लेकिन दोस्तों इस Pencil का जो सबसे बड़ा मास्टरस्ट्रोक था वह था इसका एडवर्टाइज कैंपेन विज्ञापनों में दिखाया गया कि अगर बच्चाअप्सरा एग्जाम Pencil से लिखता है तो उसकी हैंडराइटिंग इतनी साफ होती है कि टीचर उसे एक्स्ट्रा फाइव नंबर्स देता है ऐसे में यह कैंपेन बेहद पॉपुलर हुआ और इसकी वजह से कंपनी की सेल्स में जबरदस्त उछाल देखने को मिला दोस्तों सब कुछ तो अब तक बहुत अच्छा चल रहा था लेकिन 2013 में कुछ ऐसा विवाद हुआ जिसने कंपनी को मुश्किल में डाल दिया एक्चुअली बेंगलुरु में एक लॉ स्टूडेंट चिरायू जैन ने नटराज की पैरेंट कंपनी हिंदुस्तान Pencil लिमिटेड के खिलाफ में कंप्लेन दर्ज की जैन का कहना था कि कंपनी के क्रेन सेट में स्किन कलर बहुत हल्का यानी कि गोरे स्किन टोन जैसा था लेकिन उनकी खुद की स्किन टोन काफी डार्क थी और यह कलर उससे मैच नहीं करता था उन्होंने आरोप लगाया कि इससे रंग भेद को बढ़ावा मिलता है और यह इशारा करता है कि फेयर स्किन ही नॉर्मल या आइडियल है और दोस्तों इस इशू को और भी ज्यादा चर्चा तब मिली जब जब एंटी डिस्क्रिमिनेशन एक्टिविस्ट ग्रुप ब्राउन एंड प्राउड ने इसे एक अभियान का रूप दे दिया सोशल मीडिया पर नॉट माय स्किनकलर जैसे हैग ट्रेंड करने लगे और लोगों को इनकरेज किया गया कि वो अपने रियल स्किन टोन को प्राउडली एक्सेप्ट करें और फिर जब यह कैंपेन बढ़ता गया तो फिर हिंदुस्तान Pencil ने भी फाइनली एक्शन लिया और उन्होंने जो क्रेन सेट में स्किन कलर था उसका नाम बदलकर पीच कलर कर दिया इसके बाद से लोगों ने इस बदलाव को पॉजिटिव तरीके से लिया और फिर ये विवाद यहीं पर थम गया फिलहाल अगर आज की बात करें तो हिंदुस्तान पेंसिल्स भारत के ब्रांडेड स्टेशनरी मार्केट में करीब 65 पर मार्केट शेयर होल्ड करता है कंपनी का कहना है कि वह हर दिन 8 मिलियन Pencil बनाते हैं 1.5 मिलियन शार्पनर्स 2.5 मिलियन इरेजर और 1मिलियन पेंस मैन्युफैक्चर करते हैं अब दोस्तों अगर देखा जाए तो एक सिंपल सीपेंसिल कंपनी से भारत का सबसे बड़ा स्टेशनरी ब्रांड बनने तक का यह सफर आसाननहीं था लेकिन कंपनी ने अपने बेहतरीन ऐड कैंपेन और लगातार इनोवेशन से इसे मुमकिन कर दिखाया अब चाहे स्कूल हो ऑफिस हो या फिर आर्टिस्ट के टेबल हिंदुस्तान Pencil हर जगह अपनी पहचान बना चुकी है यही वजह है कि आज भी जब कोई बच्चा पहली Pencil खरीदता है तो उसके सामने सबसे पहला नाम नटराज औरअप्सरा का ही आता है जो सिर्फ एक ब्रांड नहीं बल्कि हर भारतीय की यादों का हिस्साबन चुका है