अगर आप ट्रेन को हिंदी भाषा में जानना चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही जगह पर आए हैं, आज मैं आपको ट्रेन के बारे में बताऊंगा। इस लेख में हम आपको बताएंगे कैसे हुआ ट्रेन का अविष्कार अर किस ने किया था |
ट्रेन(train) के आविष्कारक कौन थे?
ट्रेन का आविष्कार जॉर्ज स्टीवनसन नामक English engineer द्वारा किया गया था। उन्होंने 1804 में पहली सम्पूर्ण ट्रेन चलाई जिसमें एक दम्बल इंजन “रॉकेट” का इस्तेमाल किया गया था। यह घटना Britain as the Stockton–Darlington रेलवे के रूप में प्रस्तुत हुई थी और यह घटना आधुनिक रेल परिवहन के आदान-प्रदान का आरंभ मानी जाती है। “रॉकेट” इंजन ने बतौर पायलट प्रोजेक्ट में सफलता प्राप्त की और इसने रेल परिवहन की विकास की दिशा में महत्वपूर्ण प्रेरणा प्रदान की।
ट्रेन (train)का आविष्कार कौन से देश में हुआ था?
ट्रेन का आविष्कार Britain (United Kingdom) में हुआ था। George Stevenson नामक इंग्लिश इंजीनियर ने 1804 में पहली सम्पूर्ण ट्रेन चलाई जिसमें “रॉकेट” नामक इंजन का उपयोग किया गया था। इससे रेल परिवहन की शुरुआत हुई और बाद में यह तकनीक और वाहन दुनियाभर में फैली।
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ट्रेन (train)का आविष्कार कैसे शुरू हुआ था?
ट्रेन के आविष्कार की कहानी बहुत रोचक है। इसकी शुरुआत horse-drawn गाड़ियों के खगोलशास्त्रीय उपकरणों की उपयोग से हुई थी जो समय की माप और गति की गणना करने में मदद करते थे। यह उपकरणें रेल परिवहन की सोच को बदलने में महत्वपूर्ण रहीं।
जब तक 18वीं शताब्दी के अंत तक रेल परिवहन के लिए सबसे आवश्यक उपकरण – “स्थूल इंजन” नहीं थे, तब तक यह विचार तक नहीं पहुँच सका कि एक चलती ट्रेन तैयार की जा सके।
हालांकि, सबसे पहली सम्पूर्ण चलती ट्रेन और उसका इंजन “रॉकेट” जॉर्ज स्टीवनसन नामक इंग्लिश इंजीनियर द्वारा 1804 में बनाए गए थे। उन्होंने यह आविष्कार करके साबित किया कि एक धारात्मक इंजन ट्रेन को प्रवाही रूप से चला सकता है। “रॉकेट” इंजन की गति काफी उच्च थी और यह पहली बार सिरकुआरी मुवमेंट (गोल घूमने वाली चाल) का उपयोग कर रहे थे, जिसने उसकी प्रदर्शनी को और भी प्रभावी बनाया।
इसके बाद, रेल परिवहन की तकनीक और यातायात की विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कदम बढ़े और विभिन्न देशों में ट्रेन सेवाएं शुरू हो गई।
ट्रेन (train)का आविष्कार किस ने किया अर कैसे हुआ इतिहास
जब दुनिया बहुत तेजी से बदल रही थी, लोगों के विचार बदल रहे थे, जिंदगी जीने के मायने भी बदल रहे थे अब कोई सिर्फ खाने पीने तक सीमित नहीं रहना चाहता था लोग अपनी जिंदगी को आसान बनाना चाहते थे और ये यूरोप में औद्योगिक दौर था इसी दौर में यानिकी सन सत्रह सौ बारह में थॉमस न्यूकमेन ने एक इंजिन का आविष्कार किया जो कि बहुत ही सफल नहीं रहा फिर सत्रह सौ छब्बीस में मैं जेम्स वॉट ने सत्रह सौ छिहत्तर में न्यूकमेन की थ्योरी पर काम करते हुए स्टीम इंजिन का आविष्कार किया जो कि हमारी दुनिया के लिए एक बहुत बड़ा बदलाव साबित हुआ इस भाप इंजन के आविष्कार के बाद ही वैग्यानिकों की सोच में बिना घोड़ों से चलने वाली गाड़ी बनाने का खयाल आया अठारह वीं सदी की शुरुआत में दुनिया में कई ऐसे इंजीनियर थे जो की चाहते थे किसी ऐसी गाड़ी को बनाया जाए जैसे बिना घोड़ागाड़ी के चलाया जा सके इस दौर तक गाड़ियों को सिर्फ जानवरों द्वारा ही चलाया जाता था और फिर कहीं इंजीनियर्स ने इस पर काम भी किया और कुछ खास सफलता हाथ नहीं लगी ट्रेन के आविष्कार का इतिहास भी काफी लंबा रहा है और अलग अलग समय में कई लोगों ने अपना
योगदान दिया है आमतौर पर जिन लोगों का नाम ट्रेन का आविष्कार में गिना जाता है वो है रिचर्ड मैथ्यु मरे ज़ोर से स्टेशन और ऑलिवर इवान्स इन लोगों ने भी जेम्स वॉट के इंजिन के आविष्कार के बाद ही रेल गाडी बनाने का सोचा था प्रथम प्रयास पहली बार सत्रह सौ उनहत्तर में फ्रांसीसी सेना के एक इंजीनियर निकोलस ने भाप से चलने वाली एक गाड़ी बनाई जो कि दुनिया की पहली बिना जानवरों के चलने वाली गाड़ी थी ये किस्म की तोप गाड़ी थी जो चलते समय बहुत शोर करती थी और इससे बहुत सारी चिंगारियां भी निकलती थी साथ ही इसका वजन बहुत ज्यादा था और ये घोड़ागाड़ी से ज्यादा खर्चीले भी थी कुछ दिन के बाद इसके चक्के भी टूट गए और यह बहुत उपयोगी नहीं थी इसलिए इसको घर में डाल दिया गया था दूसरा प्रयास रिचर्ड ट्रैफिक जिन्हें रेल गाडी का जन्मदाता कहा जाता है, वो उस समय एक युवा मैकेनिकल इंजीनियर थे उन्होंने काफी प्रयास ओके बाद आखिर सन अट्ठारह सौ एक में लोहे के एक बड़े भाप इंजन वाली गाड़ी बनाने में सफलता हासिल कर ली इनकी गाड़ी में धुएं के लिए एक बड़ी चिमनी और साथ ही कुछ पैसेंजर्स के बैठने के लिए जगह बनी हुई थी इनकी ये गाड़ी जमीन और रेल दोनों पर चलने के
लिए बनाई गई थी ये गाड़ी जब भी चलती थी तो शोर काफी करती थी और हिलती भी थी इसलिए इसका नाम पफिंग देवल यानी की चुप चुप करने वाला शैतान रखा गया था जब यह पहली बार पटरी पर चली तो उसे देखकर लोग डर गए थे बाद में इनकी गाड़ी में कोयले की वजह से आग लग गई थी पर रिचर्ड एक बहुत ही साहसी और प्रभावशाली व्यक्ति थे उनकी पहली गाड़ी में आग लगने के बाद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और फिर सन् अठारह सौ तीन में उन्होंने दूसरी बार भाप से चलने वाली इंजिन गाड़ी बनाई जिसे उन्होंने कर्णवाल से लंदन तक की सड़कों पर चलाया इस सफर में गाड़ी के इंजन को बुरी तरह से नुकसान हुआ फिर ने इस गाड़ी को लंबे समय तक प्रयोग में लाने के लिए सिर्फ पटरी पर ही चलाने का सोचा, जिसकी वजह से उन्होंने एक कंपनी से हाथ मिलाया और करनाल से लंदन दुर्ग पटरियां बिछा दी और फिर इक्कीस फरवरी अठारह सौ चार को एक ट्रेन जिसमें पच्चीस टन लोहा और सत्तर आदमी सवाल थे उसे रिचर्ड ने खुद चार घण्टे और पांच मिनट तक चलाया था ये दुनिया में पहला मौका था जब भाप के इंजन से इतना भारी और ज्यादा सामान खींचा गया था पर इस समय तक रेलगाड़ी को बहुत ही खर्चीला और कम उपयोगी माना जाता था इसलिए उस समय किसी कंपनी ने इस प्रोजेक्ट पर काम करना फायदेमंद नहीं समझा इसलिए रिचर्ड ने इस प्रोजेक्ट पर काम करना बंद कर दिया था तीसरा प्रयास मैथ्यू मेरे एक नई सोच के इंजीनियर और व्यापारी थे जो हमेशा से एक ऐसा वाहन बनाना चाहते थे जो घोड़ों पर निर्भर ना होकर भाग के इंजिन से चले उन्होंने अट्ठारह सौ बारह में रिचर्ड ट्रैफिक के द्वारा बनाई गई रेलगाड़ी में काफी बदलाव किया इसके भाप इंजन को नए तरीके से मॉडिफाइ किया गया और फिर से अठारह सौ बारह में व्यापारिक रूप से चलाने के लिए इसे पहली बार पटरी पर दौड़ाया गया इससे पहले रिचर्ड ने सिर्फ एक बार ही ट्रेन को पटरी पर चलाया था और मैथ्यू ने पहली बार इसे व्यापार करने के लिए चलाया था उनकी कंपनी ने इंग्लैंड के कई शहरों में धीरे धीरे रेल की पटरियां बिछाने का काम शुरू किया पर अभी तक रेलवे इतनी ज्यादा प्रचलित नहीं हुई थी कि ऐसे लोगों द्वारा खुलकर अपनाया जाता अभी तक रेलवे द्वारा ज्यादातर माल ढोने का काम ही किया जा रहा था चौथा प्रयास जॉर्ज स्टेप सन इन्हें कोयले के इन जिनके इस्तेमाल और ट्रेन को दुनिया के अन्य हिस्सों तक पहुंचाने के लिए जाना जाता है इनकी कंपनी का नाम था रॉबर्टसन
ऐंड कंपनी जो उनके बेटे रॉबर्ट के नाम थी इन्होंने इन जिनमें कई बदलाव करके उसे और ज्यादा मजबूत और शक्तिशाली बनाया था जो भारी वजन को खींचने में सक्षम भी था सत्ताईस सितंबर अठारह सौ पच्चीस को भाव के इंजिन, से अड़तीस डिब्बों वाली रेलगाड़ी को खींचा गया जिसमें छह सौ यात्री सवार थे इस पहली रेलगाड़ी ने लंदन से स्टॉक लोन तक का सैंतीस मील का सफर चौदह मील प्रति घंटा की रफ्तार से तय किया था आधिकारिक रूप से इसे ही विश्व की पहली ट्रेन कहा जाता है जिसने को एक स्थान से दूसरे स्थान तक सफर कराया था दुनिया की इस पहली ट्रेन के भाप के इंजन का नंबर था लुक मोशन नंबर वन जॉर्ज ने ट्रेन के आविष्कार में एक क्रांति ला दी थीं इनके कोयले के इंजिन के इस्तेमाल के बाद दुनिया के अन्य देशों में इसे बनाने की होड़ लग गई थी ऑलीवर ईमान से एक अमेरिकी इंजीनियर थे इन्होंने भाप के इंजन में कई बदलाव किए और पहली बार हाई प्रेशर भाप के इंजन का निर्माण किया पांचवां प्रयास रूडोल्फ डीजल खयाल सौ अट्ठावन में जन्मे रुडोल्फ डीजल ने अठारह सौ सत्तानवे में डीजल इंजिन बना कर एक कीर्तिमान रच दिया था उनके बनाए हुए इंजिन का प्रयोग आज भी पूरी दुनिया में
किया जाता है उन्होंने अठारह सौ सत्तानवे में पच्चीस हॉर्सपॉवर के चार स्ट्रोक सिंगल सिलेंडर डीजल इंजन बनाया था इन केस आविष्कार के बाद उन्नीस सौ बारह में रोमन शोर ने रेलवे द्वारा स्विट्जरलैंड में पहली बार डीजल इंजिन से रेलगाड़ी चलाई गई थी भारतीय रेल का इतिहास आज भारतीय रेल को दुनिया की टॉप पांच सबसे बड़ी रेलवे नेटवर्क में गिना जाता है, जोकि तकरीबन पंद्रह, लाख कर्मचारियों को रोजगार देती है और पूरे देश को आपस में जोड़कर रखती हैं पर क्या आप जानते हैं कि भारत में पहली रेलगाड़ी कहाँ चली थी? अगर नहीं तो मैं आपको बता दूँ कि भारत में पहली रेलगाड़ी सोलह अप्रैल अठारह सौ तिरपन को बोरीबंदर से थाने तक पैंतीस किलोमीटर तक चलाई गई थी उस वक्त यह ट्रेन तकरीबन बीस डिब्बों की थी और इसमें चार सौ यात्रियों ने सफर किया था इस रेलगाड़ी को ब्रिटेन से मंगाए गए तीन भाप के इंजिन सुल्तान साहिब और सिंधु ने खींचा था आपको बता दें कि अठारह सौ पैंतालीस में कोलकाता में ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेल कंपनी की स्थापना हुई इसी कंपनी ने अठारह सौ पचास में मुंबई से थाने तक रेल की पटरियां बिछाने का काम शुरू किया था भारत में अठारह सौ छप्पन से
भाप के इंजन बनना शुरू हुए थे और धीरे धीरे पूरे देश में पटरियां बिछाने का काम भी शुरू हुआ हालांकि पूरे देश में पटरियां बिछाने का कोई आसान काम नहीं था इसे बहुत सी जगह रोकने के लिए आंदोलन भी किया गया पर ब्रिटिश सरकार की क्रूरता के आगे किसी की नहीं चलती थी दोस्तों अगर आपको यह blogपसंद आई हो तो इसे अपने किसी एक दोस्त को शेयर करे
FAQ-
- ट्रेन के आविष्कारक कौन थे?
- भारत में रेलगाड़ी का आविष्कार कब हुआ था?
- भारत में ट्रेन का आविष्कार कौन किया था?
- ट्रेन का फुल फॉर्म क्या है?
- ट्रेन का पहला नाम क्या था?
- दुनिया की सबसे पहली ट्रेन कब बनी थी?
- भारत में कितनी ट्रेनें हैं?
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