रेडियो का इतिहास, रेडियो का आविष्कार कब और कैसे हुआ ?

 

टेलीविजन से पहले मनोरंजन का एक ही  स्रोत था   तब रेडियो ही लोगों के मनोरंजन का एकमात्र विकल्प हुआ करता था यह लोगों के उसे समय मनोरंजन का एकमात्र यंत्र था साथ ही रेडियो मीडिया के संरक्षण का एक प्रमुख माध्यम हुआ करता था देश दुनिया और मनोरंजन जगत की सभी खबरें रेडियो के माध्यम से ही लोगों तक पहुंचती थी और लोग इसे सुनने के लिए बेताब रहते थे साथी लोग रेडियो पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों का ठीक उसी तरह से इंतजार करते थे जैसे आज टीवी में अपना प्रिय धारावाहिक या फिर फिल्म देखने के लिए करते हैं पहले के समय में गांव में लोग एक जगह इकट्ठा होकर रेडियो पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम का बड़ी बेसब्री से इंतजार करते थे लेकिन आज के आधुनिक समय में रेडियो की उपयोगिता थोड़ी कम हो गई है हालांकि रेडियो द्वारा दी जाने वाली सेवाओं में बदलाव की वजह से आज भी रेडियो लोगों की जिंदगी काहिस्सा बना हुआ है क्योंकि आप रेडियो ब्रॉडबैंड टैबलेट वहां और मोबाइल में भी आसानी से उपलब्ध करा दिया गया है

    रेडियो होता क्या है?

 रेडियो वेव पर आधारित एक यंत्र होता है और आपको बता दें कि रेडियो वेव्स एक प्रकार की इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें होती हैं जिसकी फ्रीक्वेंसी 30 हार्ट से लेकर 300 तक होती है रेडियो तरंगे ट्रांसमीटर के द्वारा जनरेट की जाती है जो की एंटीना से जुड़ा होता है इन तरंगों को रिसीव करने वाले डिवाइस को रेडियो रिसीवर कहा जाता है जिसमें एक एंटीना लगा होता है वर्तमान में रेडियो काफी ज्यादा उपयोग की जाने वाली एक आधुनिक तकनीक है यह कई प्रकार की होती है जैसे रडार रेडिएशन रेडियो नेविगेशन रिमोट कंट्रोल रिमोट सेंसिंग आदि सभी इसी पर आधारित होती है 

 

आविष्कार कब और कैसे  पहले क्या ?

यह साल 1680 का था जब पहली बार कई वैज्ञानिक और इंजीनियर ने रेडियो वेव्स के बारे में विस्तार से सोच और फिर अंदाजा लगाया कि कुछ इस तरह इस्तेमाल संचार के लिए किया जा सकता है फिर सन 1866 में कुछ प्रयोगों के जरिए यह समझ गया कि इलेक्ट्रिक करंट वेरिएशन को स्पेस में इस तरह छोड़ दिया जाता है जिससे संदेश भेजा जा सके

प्रथम प्रयास में  क्या हुआ और कैसे बना रेडियो ?

करीब 1880 के दशक में हेनरी रुडोल्फ हर्ष ने इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों की खोज की जिसके बाद रेडियो के आविष्कार में और मदद मिली अपने इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों की खोज के बाद हर्ष ने भी कई सालों तक रेडियो के आविष्कार में अपना योगदान दिया पर सफलता मिलने से पहले उनकी मृत्यु हो गई और उनका यह आविष्कार अधूरा रह गया फिर बाद में उनके फिर बाद में उनके सहयोगियों ने हर्ष की खोजने के ऊपर एक किताब बनाई जिसमें इस विषय की पुरानी सफल खोजें और हर्ष द्वारा सफलतापूर्वक खोज के साथ इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों के बारे में डिटेल में जानकारी दी गई ताकि भविष्य में हर्ष की खोज को आगे बढ़ाया जा सके

रेडियो का इतिहास, रेडियो का आविष्कार कब और कैसे हुआ ?

दूसरा प्रयास में क्या क्या हुआ और कैसे बना रेडियो

हर्ष की किताब को पूरी दुनिया के विशेषज्ञों ने ध्यान से पढ़ा जिनमें से एक जगदीश चंद्र  बोस  भी थे बोस  पर इस किताब ने इतना प्रभाव डाला कि उन्होंने कुछ ही सालों में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों पर आधारित एक उपकरण बना दिया जिसे 1890 के दशक में उन्होंने एक वैज्ञानिक प्रदर्शन के दौरान दूर रखिए एक घंटी को इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों के माध्यम से बजा कर दिखा दिया यह उसे समय एक अविश्वसनीय बात थी

त्रित्या प्रयास में क्या क्या हुआ और कैसे बना रेडियो ?

रेडियो का अविष्कार बहुत लोग की  कोशिश ही तो बहुत से लोगों ने की आधिकारिक तौर पर रेडियो का आविष्कार गुग्लिल्मो मार्कोनी माना जाता है उनको ही बेकार के तर्ज यानी बिना तार के सिग्नल भेजने का जन्मदाता भी कहा जाता है इसी आविष्कार के लिए उन्हें 1909 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार दिया गया  मार्कोनी का जन्म इटली में हुआ था बचपन से ही मारकोनी की रुचि विज्ञान में थी वह अक्सर विज्ञान के विभिन्न प्रयोगों में लगे रहते सितंबर 1894 में एक रात की बात है मार्कुनि एक कमरे से दूसरे कमरे में गए और वहां जाकर उन्होंने एक मोस्ट कुंजी को दबाया जिसके बाद चिंगारियां की चटपट हुई और 30 सीट पर रखी हुई घंटी बाजूठी यह देखकर मकानी की खुशी का ठिकाना ना रहा उसके बाद उन्होंने और जोर-जोर से अपने शोध पर काम करना शुरू कर दिया फिर एक दिन की बात है l मारकोनी ने अपने बनाए हुए ट्रांसमीटर को पहाड़ी की एक और रखा और रिसीवर को दूसरी ओर रिसीवर के पास संदेश ग्रहण करने के लिए उनका भाई खड़ा था

जब उनके भाई को संदेश प्राप्त होने लगे तो वह खुशी के मारे पहाड़ी पर चढ़कर नाचने लगा उनकी ऐसी खुशी को देखकर विश्वास हो गया कि उनका यंत्र कम कर रहा है उसके बाद उन्होंने लंदन में सन 1896-97 बीच अपने द्वारा निर्मित कम से बेकार से संबंधित कई सफल प्रदर्शन किया और फिर 1897 में 12 मिल की दूरी तक वीडियो संदेश भेजने में सफल हुए इसे सारी यूरोप में एक नाम की धूम मच गई फिर 12 दिसंबर 1901 को महान कार्य किया उन्होंने पहली बार अंग्रेजी के अक्षर को द्वारा अटलांटिक सागर के आर पार भेजने में सफलता प्राप्त की जिसके बाद विश्व भर में डंका बज गया

कई इतिहासकारों का मानना है कि मारकोनी के आविष्कार की वजह से जितने लोगों को बचाया गया था ना और ऐसी घटनाओं में रेडियो के माध्यम से संदेश भेज कर कई लोगों को बचाया गया

एक साथ दो लोगो और ज्यादा के पास संदेश भेजने के लिए चौथा प्रयास

उस संदेश को सिर्फ एक ही व्यक्ति को भेजा जा सकता था वैज्ञानिक ने भी कई वर्षों तक रेडियो के आविष्कार पर काम किया था और उन्हें सफलता भी मिली 24 दिसंबर 1906 की शाम इस कनाडा वैज्ञानिक ने जब अपना वायलिन बजाय तब अटलांटिक महासागर में तैर रहे तमाम जहाज की रेडियो ऑपरेटर ने उसे संगीत को अपने रेडियो सेट पर सुना वह दुनिया में रेडियो प्रसारण की पहली पहल थी हालांकि इससे पहले जगदीश चंद्र बसु ने भारत में तथा गुलाम मारकोनी ने सन 1901 में इंग्लैंड से अमेरिका बेटर संदेश भेजकर व्यक्तिगत रेडियो संदेश भेजने की शुरुआत कर दी थी पर एक से अधिक व्यक्तियों को एक साथ संदेश भेजना या ब्रॉडकास्टिंग की शुरुआत 1906 में प्रेसिडेंट ने ही की थी इसके बाद यानी 1906 में ली द फॉरेस्ट और चाइल्ड हलाल जैसे लोगों ने रेडियो प्रसारण को और आधुनिक बनाने के प्रयोग शुरू किया इसी के बाद रेडियो का इस्तेमाल संचार के माध्यम के तौर पर मैसेज पहुंचने के मकसद से सिर्फ नौसेना में किया जाने लगा फिर 1917 में प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत के बाद किसी भीगैर फौजी के लिए रेडियो का प्रयोग प्रतिबंधित कर दिया गय फॉरेस्ट के द्वारा साल 1918 में दुनिया के पहले रेडियो स्टेशन की शुरुआत की गई थी लेकिन बाद में पुलिस ने से अगर कानूनी करार देकर बंद करवा दिया इसके बाद नवंबर 1920 में नौसेना के रेडियो विभाग में काम कर चुके फ्रैंक कोणार्क को कानूनी तौर पर दुनिया में पहली बार रेडियो स्टेशन की शुरुआत करने की इजाजत दे दी गई और इस तरह रेडियो पर लगी रोग को हटा दिया गया जिसके बाद साल 1923 में दुनिया में रेडियो पर विज्ञापन की शुरुआत हुई शुरुआत में रेडियो को रखने के लिए ₹10 में लाइसेंस खरीदना पड़ता था हालांकि बाद में यह लाइसेंस रद्द कर दिया गया

भारत में रेडियो का इतिहास

भारत में साल 1924 में सबसे पहले मद्रास प्रेसीडेंसी क्लब रेडियो को लेकर आया था इस क्लब ने 1927 तक रेडियो ब्रॉडकास्टिंग पर प्रसारण का काम किया हालांकि बाद में आर्थिक परेशानियों के चलते मद्रास क्लब द्वारा इसे बंद कर दिया गयाइसके बाद इसी साल 1927 में मुंबई के कुछ बड़े बिजनेसमैन ने भारतीय प्रसारण कंपनी को मुंबई और कोलकाता में शुरू कियाइसके बाद साल 1932 में भारत सरकार ने इसकी जिम्मेदारी खुद ले ली और इंडियन ब्रॉडकास्टिंग सर्विस नाम का विभाग शुरू किया जिसका साल 1936 में नाम बदलकर ऑल इंडिया रेडियो रख दिया गया जो कि बाद में आकाशवाणी के नाम से भी जाना जाने लगा भारत में सरकार द्वारा बनाई गई रेडियो प्रसारण एक राष्ट्रीय सेवा भी थी जिसके बाद पूरे देश में इसके प्रसारण के लिए स्टेशन बनाए गए और देश के कोने तक इसकी पहुंच बनाई गई यही नहीं वीडियो ने भारत की आजादी में अपनी भूमिका निभाई थी  साल 1942 में नेशनल कांग्रेस वीडियो का प्रसारण जब शुरू किया गया था तब स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी जी ने इसी रेडियो स्टेशन से अंग्रेजों भारत छोड़ो का प्रसारण किया था

 

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